पितृ पक्ष के बाद 18 सितंबर से आश्विन मास का अधिकमास शुरू हो रहा है। इस माह की वजह से पितृ पक्ष के बाद नवरात्रि शुरू नहीं होगी। अधिकमास को अधिमास, मलमास और पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार हर तीन साल में एक बार अधिकमास आता है।
अधिकमास की वजह से ऋतु और त्योहारों के बीच तालमेल बना रहता है। हिन्दू धर्म में त्योहारों की व्यवस्था भी ऋतुओं के आधार पर ही बनाई गई है। सावन माह वर्षा ऋतु में आता है, दीपावली शीत ऋतु की शुरुआत में आती है, मकर संक्रांति शीत ऋतु के अंतिम दिनों में आती है। ऋतुओं के संधिकाल में एक वर्ष में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है। अधिकमास की वजह से जो त्योहार जिस ऋतु में आना चाहिए, वह उसी ऋतु में आता है।
भगवान विष्णु का वरदान है अधिकमास को
भगवान विष्णु ने मलमास को अपना नाम पुरुषोत्तम दिया है। साथ ही, विष्णुजी ने इस माह को वरदान दिया है कि जो इस माह में जो भक्त भागवत कथा सुनेगा या पढ़ेगा, ध्यान करेगा, मंत्र जाप, पूजा-पाठ करेगा, शिव पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान और पवित्र नदियों में स्नान करेगा, उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा। इस माह में किए गए धर्म-कर्म से मानसिक अशांति दूर हो सकती है। विचारों की पवित्रता बढ़ती है और मन शांत रहता है।
अधिकमास में कौन-कौन से काम करने से बचना चाहिए
इस माह में विवाह के लिए मुहूर्त नहीं होते हैं। लेकिन, विवाह की तारीख तय की जा सकती है। नवीन गृह में प्रवेश करने के मुहूर्त भी नहीं रहते हैं। लेकिन, घर की बुकिंग की जा सकती है। घर के लिए जरूरी सामान खरीदे जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण, इलेक्ट्रानिक्स जैसी जरूरी चीजें भी इस माह में खरीद सकते हैं। मलमास में नामकरण संस्कार और यज्ञोपवित संस्कार नहीं किए जाते हैं।
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